बिहार चुनाव के बीच वक्फ बिल बीजेपी के लिए बड़ा खतरा! आखिर किस बात का सता रहा डर ?
बता दें कि यह विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम में बड़ा बदलाव लाएगा। इस बिल के पास होने से सरकार को वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के नियमों और उनसे जुड़े विवादों के निपटारे में दखल देने का अधिकार मिलेगा। बीते 27 जनवरी को बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में इस विधेयक के 14 संशोधनों को मंजूरी दी गई थी। इसमें विपक्ष के 44 संशोधनों को खारिज कर दिया गया था। पिछले महीने केंद्रीय विधेयक ने इसकी मंजूरी दी थी।

बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बाकी है। सभी पार्टियां अपनी तैयारियों में जुट गई हैं। लेकिन आने वाले चुनाव में वक्फ बिल नीतीश की एनडीए सरकार के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। दरअसल, केंद्रीय मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद यह चर्चा जोरों पर है कि वक्फ संशोधन (बिल) मौजूदा बजट सत्र में ही पेश किया जाएगा। इसके बाद बीजेपी में एक धड़ा इसका विरोध करता नजर आ रहा है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इसे बिहार चुनाव तक टाला जा सकता है। गृहमंत्री अमित शाह ने टाइम्स नाउ समिट के दौरान एक बार फिर से दोहराया कि यह विधेयक मौजूदा सत्र में
पेश किया जाएगा। जानकारी के लिए बता दें कि बजट सत्र 4 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। सोमवार को ईद की छुट्टी है। इसके बाद सिर्फ 4 दिन ही बचेंगे।
यह विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत बड़े बदलाव लाएगा
बता दें कि यह विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम में बड़ा बदलाव लाएगा। इस बिल के पास होने से सरकार को वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के नियमों और उनसे जुड़े विवादों के निपटारे में दखल देने का अधिकार मिलेगा।
बीते 27 जनवरी को बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में इस विधेयक के 14 संशोधनों को मंजूरी दी गई थी। इसमें विपक्ष के 44 संशोधनों को खारिज कर दिया गया था। पिछले महीने केंद्रीय विधेयक ने इसकी मंजूरी दी थी।
वक्फ बिल को लेकर किस बात का डर
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सरकार में रहने वाले कुछ वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि सीमांकन और तीन भाषा नीति को लेकर उत्तर और दक्षिण भारत में राजनीतिक मतभेद हो रहे हैं। इसकी वजह से वक्फ बिल इन विभाजन रेखाओं को और भी ज्यादा गहरा कर सकता है। ऐसे में सरकार इस बिल को कुछ समय के लिए रोक सकती है। खासतौर से बिहार चुनाव के बाद ही इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
विपक्षी दलों ने वक्फ बिल को राजनीतिक हथकंडा बताया
विपक्षी दलों का कहना है कि अगर सरकार इस बिल को टालती है। तो यह सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा होगा। इससे विपक्ष की तरफ से रखी गई आपत्तियों को दूर करने में कोई भी मदद नहीं मिलेगी। वहीं समाजवादी पार्टी के नेता जावेद अली का कहना है कि "सरकार इस बिल को पश्चिम बंगाल और असम चुनाव से ठीक पहले लाएगी। ताकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ उठाया जा सके।" एक और सांसद का कहना है कि "सरकार अगर इसे टालती है। तो इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। सरकार ने विपक्ष द्वारा सुझाए गए किसी भी संशोधन को नहीं माना है। ऐसे में इस विधेयक को टालने का कोई मतलब नहीं बनता।"
ओवैसी ने इस वक्फ बिल संशोधन को असंवैधानिक बताया
AIMIM के नेता सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को असंवैधानिक बताया है। इस विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14,15,26 और 29 का उल्लंघन बताते हुए इसका विरोध जताया है। ओवैसी का कहना है कि "हमारा विरोध किसी चुनाव को देखकर नहीं है। बल्कि इस विधेयक के असंवैधानिक होने का कारण है। साल 1995 में जब वक्फ अधिनियम पारित हुआ। तो 2013 में इसमें संशोधन किया गया था। उस दौरान भाजपा इसका समर्थन कर रही थी। वक्फ बोर्ड किसी धार्मिक न्यास की तरह ही है। जैसे हिंदू एंड्रोमेट बोर्ड, गुरुदारा प्रबंधक कमेटी, ईसाई धर्मार्थ संगठन। इन सभी के सदस्य केवल उनके धार्मिक समुदाय से आते हैं। लेकिन सरकार वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों को शामिल करना चाहती है। यह किसी भी तरीके से मुस्लिम समुदाय के हित में नहीं है।
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