हाथ से निकलता बंगाल, बांग्लादेशी कट्टरपंथियों के कब्जें में करीब 9 जिले, AFSPA लगाना ही एकमात्र विकल्प?
पश्चिम बंगाल में आए दिन धर्म आधारित विषयों पर दंगे होते रहे हैं जिसमें ज्यादातर मामले इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि इन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता है। अब समय आ गया है कि सीमा पर न सिर्फ हर हाल में घुसपैठ रोकनी होगी बल्कि AFSA कानून लागू करना पड़ेगा।

कैसे भड़की मुर्शिदाबाद में हिंसा?
8 अप्रैल 2025 को मुर्शिदाबाद के जंगीपुर, सुती और शमशेरगंज में वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए. शुरुआत में शांतिपूर्ण रहे ये प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गए. बांग्लादेशी घुसपैठ और करीब 66% मुस्लिम आबादी वाले इस जिले में आए दिन प्रदर्शन होते रहते हैं, हिंसी भी होती रही है जो फौरन सांप्रदायिक हमले का शक्ल अख्तियार कर लेती हैं. 10 अप्रैल को शमशेरगंज में सड़क जाम और पुलिस पर पथराव की घटनाएं सामने आईं.
विरोध से बवाल, बांग्लादेशी घुसपैठ और BSF की तैनाती
11 अप्रैल, जुमे की नमाज के बाद, भीड़ ने पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया, दुकानों में तोड़फोड़ की गई और रेलवे स्टेशनों पर हमले किए गए. वहीं 12 अप्रैल को शमशेरगंज में मूर्तिकार हरगोबिंद दास और उनके बेटे की हत्या कर दी गई, जबकि 13 अप्रैल को अज्ञात गोली लगने से घायल नाबालिग इजाज मोमिन की मौत हो गई. राज्य में बढ़ रहे तनाव और हिंसा की घटनाओं पर हाई कोर्ट ने भी हस्तक्षेप किया और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के आदेश दिए.
बीते दिनों कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में BSF की 8 कंपनियां (लगभग 1,000 पुलिसकर्मी शामिल हैं) की तैनाती की गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, न्यायालय ने मुर्शिदाबाद पर कहा कि हम ‘आंखें बंद नहीं रख सकते’! वहीं HC ने ममता सरकार को 17 अप्रैल तक एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.
ताज़ा मामले की बात करें तो स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रण में आई, लेकिन तनाव अभी भी बरकरार है.
बांग्लादेशी घुसपैठ और कट्टरपंथी संगठनों की संदिग्ध भूमिका?
मुर्शिदाबाद, मालदा, और उत्तर-दक्षिण 24 परगना जैसे सीमावर्ती जिले लंबे समय से बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या से जूझ रहे हैं. पुलिस सूत्रों के अनुसार, हिंसा में शामिल कुछ लोग बांग्लादेशी मूल के हैं, जिनके प्रत्य़क्ष और अप्रत्य़क्ष रूप से बांग्लादेशी कट्टरपंथी संगठन ‘अंसार उल बांग्ला’ तथा केरल के सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) जैसे संगठनों से हैं, फिलहाल इनकी भूमिका की जांच जारी है.
डेमेग्रॉफी में बड़ा बदलाव!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में अनुमानित 1.5 करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिए हो सकते हैं. रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए नकली दस्तावेज बनवाकर स्थानीय आबादी में शामिल हो जाते हैं, जिनकी पहचान मुश्किल हो जाती है क्योंकि कहा जाता है कि इन्हें स्थानीय-राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर संरक्षण प्राप्त होता है.
इसके कारण न केवल जनसंख्या संतुलन बदलता है, बल्कि सामाजिक तनाव और कट्टरपंथ भी बढ़ता है. न्यायालय के निर्देश के बाद भले ही BSF को इन इलाकों में निगरानी का काम मिला है, लेकिन उसे राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के सहयोग की भी आवश्यकता होती है. बिना पुलिस के सहयोग के बीएसएफ से किसी भी तरह की कार्रवाई और शांति की अपेक्षा बेमानी है.
बंगाल के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी?
हिंसा का असर सिर्फ मुर्शिदाबाद तक सीमित नहीं रहा. मालदा, उत्तर और दक्षिण 24 परगना, वीरभूम और बहरामपुर जैसे जिले भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए. अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो हैरान करने वाली बात सामने आती है.
2011 की जनगणना के अनुसार डेमोग्राफी और जनसंख्या!
मुर्शिदाबाद: 71 लाख जनसंख्या, 66.3% मुस्लिम
मालदा: 40 लाख, 51.3% मुस्लिम
उत्तर 24 परगना: 1 करोड़, मुस्लिम 47.8%
दक्षिण 24 परगना: 81 लाख, मुस्लिम 35.6%
वीरभूम: 35 लाख, मुस्लिम 37.1%
इन क्षेत्रों में मुस्लिमों की बहुलता, सीमावर्ती स्थिति और पूर्व की घटनाओं (CAA-NRC विरोध) की पुनरावृत्ति के चलते हिंसा तेजी से फैली. CAA-NRC विरोध की तरह इस बार भी अंसार-उल-बांग्ला और PFI जैसे संगठनों पर हिंसा को भड़काने के आरोप लगे हैं.
BSF की कार्रवाई और शांति स्थापना की रणनीति!
BSF ने 900 से अधिक जवानों की तैनाती कर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया. इन जवानों को सुती, शमशेरगंज, जंगीपुर और धुलियान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किया गया. मुर्शिदाबाद हिंसा ने एक बार फिर साबित किया है कि सीमावर्ती इलाकों में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तनाव की चिंगारी किसी भी समय दंगे में बदल सकती है. BSF की त्वरित कार्रवाई ने भले ही स्थिति को फिलहाल नियंत्रित किया हो, लेकिन जब तक बांग्लादेशी घुसपैठ, नकली दस्तावेजों का नेटवर्क और कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियों पर निर्णायक कार्रवाई नहीं होती, तब तक स्थायी समाधान संभव नहीं है.
AFSPA ही एकमात्र विकल्प है?
पश्चिम बंगाल में आए दिन धर्म आधारित विषयों पर दंगे होते रहे हैं, जिसमें ज्यादातर मामले इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि इन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता है और सरकार के लोग ऊपर से नीचे तक तुष्टिकरण पर उतारू हैं, बल्कि इसकी पाराकाष्ठा कर चुके हैं. कश्मीर की समस्या से लेकर उत्तर पूर्व के कई राज्यों में सालों तक आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट की मौजूदगी या यूं कहें कि AFSPA लागू रही है, जिसमें सुरक्षा बलों को स्पेशल पावर होती हैं. इसमें निगरानी और जांच से लेकर कार्रवाई तक, उनके मामले बहुत हद तक कोर्ट से भी बाहर होते हैं. ये कानून इतना सख्त है कि अगर यह किसी इलाके में लग जाए तो वह इलाका एक चलता फिरता जेल बन जाता है. सेना अपने हिसाब से इलाके को नियंत्रण में लेती है. दूसरे शब्दों में कहें तो सिर्फ इस कानून को हटाने के लिए होने वाली भूख हड़ताल इतनी चर्चित हो गई कि क्या ही कहें. AFSPA विरोध की तप से इरोम शर्मिला जैसी शख्सियत पैदा हुई. हालात देखें तो बंगाल में उस से भी विकट हैं, स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, भारत में पड़ोसी बांग्लादेश के घुसपैठियों का दखल बढ़ता जा रहा है. अब मोदी सरकार को जल्द से जल्द इस पर विचार करना पड़ेगा, राज्य सरकार से किसी भी सहयोग की अपेक्षा नहीं की जा सकती है.
बांग्लादेशी-रोहिंग्या जैसी घुसपैठों को कैसे रोकें?
ये अब खुलकर कहने की जरूरत है कि पुलिस और BSF घुसपैठ को न सिर्फ रोकने में नाकाम रहे हैं बल्कि इस समस्या को नासूर बनाने में उनका ही सबसे बड़ा योगदान है. सरकार और अमित शाह जैसे मजबूत-दूरदर्शी गृह मंत्री को इस पर कठोर फैसला लेना होगा.
मोदी सरकार को घुसपैठ को रोकने के लिए कुछ जरूरी उपाय करने होंगे. सीमा पर हाई-टेक निगरानी बढ़ानी होगी, घुसपैठियों की पहचान और उन्हें वापस भेजना, फर्जी दस्तावेज रैकेट पर सख्ती के साथ-साथ इस खेल में शामिल लोगों पर NSA लगाना, कट्टरपंथी संगठनों की फंडिंग और नेटवर्क तोड़ना, जैसा कश्मीर में किया गया और अगर संभव हो पाए तो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय किया जाना चाहिए. इन उपायों के बिना बंगाल की समस्या और विकराल हो जाएगी.