EVM से चुनाव है एक फ्रॉड, बैलट से चुनाव की फिर उठी मांग
मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाए और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की।

गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा है, जिसमें देशभर से 1,700 से अधिक कांग्रेस प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। अधिवेशन के दूसरे दिन अमेरिकी टैरिफ, संसद, महंगाई सहित कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इसी दौरान ईवीएम का मुद्दा उठा, और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ईवीएम को लेकर बड़ा बयान दिया।
"पूरी दुनिया के विकसित देश ईवीएम को छोड़कर बैलेट पेपर की ओर चले गए हैं। कहीं भी दुनिया में ईवीएम नहीं है, सिर्फ भारत में है। यह सब फ्रॉड है।"
खड़गे यहीं नहीं रुके। उन्होंने भारत में भी बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिससे उसे चुनावों में फायदा और विपक्ष को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी।
कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने नेताओं को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा, "जो लोग काम नहीं करना चाहते, वे रिटायर हो जाएं। जो पार्टी का काम नहीं कर रहे, वे आराम करें।"
वहीं, विपक्ष के बार-बार ईवीएम पर सवाल उठाने पर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कांग्रेस को घेरा था। उन्होंने पूछा था कि अगर ईवीएम में दिक्कत है, तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई? साथ ही उन्होंने कांग्रेस के दोहरे रवैये पर भी तंज कसा था।
अब जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठाया, तो कांग्रेस के कई नेता उनके समर्थन में आ गए। लेकिन जब ईवीएम की बात चल ही रही है, तो आइए जान लेते हैं इसका इतिहास—
ईवीएम का इतिहास:
- पहली बार 1982 में केरल के विधानसभा उपचुनाव में ईवीएम का प्रयोग किया गया।
- 1999 में गोवा पहला राज्य बना जहां आम चुनाव ईवीएम से कराए गए।
- 2003 में उपचुनाव और राज्य चुनावों में भी ईवीएम का उपयोग हुआ।
- 2004 से भारत में आम चुनाव ईवीएम से कराने का निर्णय लिया गया।
अब यह कोई नई बात नहीं है कि विपक्ष अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ता है। लेकिन शायद खड़गे यह भूल गए कि 2004 और 2009 के आम चुनाव भी ईवीएम से ही हुए थे—और दोनों बार कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था। तब ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठता था, न ही कोई साजिश दिखाई देती थी।
आज, जब कांग्रेस को चुनावी हार का सामना करना पड़ता है, तब ईवीएम को दोषी ठहराया जाता है। लेकिन जिन राज्यों में कांग्रेस को बहुमत मिलता है, वहां ईवीएम एकदम सही काम करती है।ऐसे में सवाल उठता है—क्या कांग्रेस लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा करती है या अपनी विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए ईवीएम को निशाना बना रही है?