THURSDAY 01 MAY 2025
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अमेरिका में हिंदूफोबिया? ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के कोर्स पर छिड़ा विवाद

अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में पढ़ाए जा रहे हिंदू धर्म से जुड़े एक कोर्स पर विवाद खड़ा हो गया है। भारतीय-अमेरिकी छात्र बसंत भट्ट ने आरोप लगाया है कि इस पाठ्यक्रम में हिंदू धर्म को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है और इसे एक औपनिवेशिक निर्माण तथा राजनीतिक उपकरण के रूप में दिखाया जा रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से इसकी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

अमेरिका में हिंदूफोबिया? ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के कोर्स पर छिड़ा विवाद
अमेरिका के ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में हिंदू धर्म से जुड़े एक कोर्स को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद तब सामने आया जब एक भारतीय-अमेरिकी छात्र बसंत भट्ट ने इस कोर्स की सामग्री पर आपत्ति जताई। उनका आरोप है कि इस कोर्स में हिंदू धर्म को एक प्राचीन परंपरा के बजाय एक औपनिवेशिक निर्माण और राजनीतिक उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अलावा, इस पाठ्यक्रम में हिंदुत्व को ‘हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक राजनीतिक साधन’ बताया गया है।

इस विवाद ने अमेरिका में हिंदूफोबिया (Hinduphobia) को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में अमेरिकी आयोग USCIRF ने भारत को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की बात कही गई थी। भारत ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया था।

क्या है पूरा मामला?

ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में ‘लिव्ड हिंदू रिलीजन’ नामक एक ऑनलाइन कोर्स पढ़ाया जाता है, जिसे प्रोफेसर आरोन माइकल उल्लेरी संचालित कर रहे हैं। इस कोर्स में हिंदू धर्म को लेकर जो बातें बताई जा रही हैं, उन पर भारतीय-अमेरिकी छात्र बसंत भट्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि इस कोर्स की सामग्री हिंदू धर्म के मूल विचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। इसके अलावा, इसमें भारत के वर्तमान राजनीतिक हालात को भी विकृत रूप में दिखाया जा रहा है।

बसंत भट्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन से इस मुद्दे पर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद यह मामला तूल पकड़ने लगा और कई हिंदू संगठनों ने भी इस पर आवाज उठाई।

छात्रों और संगठनों की प्रतिक्रिया

इस विवाद के बाद ‘हिंदू ऑन कैंपस’ नामक छात्र संगठन ने भी इस कोर्स पर आपत्ति जताई। इस संगठन का कहना है कि इस तरह के पाठ्यक्रम से अमेरिका में रह रहे हिंदू छात्रों को भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, मशहूर लेखक राजीव मल्होत्रा ने इसे अमेरिका में दशकों से चले आ रहे हिंदूफोबिया का एक और उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में हिंदू धर्म को अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है और इसे एक कट्टर विचारधारा के रूप में दिखाने की कोशिश की जाती है।

‘हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन’ (HAF) ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की और कहा कि विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले इस तरह के पाठ्यक्रम भारतीय छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। संगठन ने मांग की है कि इस कोर्स की सामग्री की निष्पक्ष समीक्षा की जाए और इसमें आवश्यक संशोधन किए जाएं।

ह्यूस्टन विश्वविद्यालय ने क्या कहा?

इस विवाद पर ह्यूस्टन विश्वविद्यालय का बयान भी सामने आया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि वे इस मामले की समीक्षा कर रहे हैं और छात्रों द्वारा उठाई गई चिंताओं को गंभीरता से लिया जा रहा है। विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी शॉन लिंडसे ने कहा कि, "हम अकादमिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन यदि कोई कोर्स भेदभावपूर्ण या पक्षपाती पाया जाता है, तो उस पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।" हालांकि, अभी तक विश्वविद्यालय ने इस कोर्स में किसी भी बदलाव की घोषणा नहीं की है।

अमेरिका में हिंदूफोबिया की बढ़ती घटनाएं

अमेरिका में यह पहला मामला नहीं है जब हिंदू धर्म को लेकर विवाद हुआ हो। इससे पहले भी कई बार हिंदूफोबिया के मामले सामने आ चुके हैं।

2021 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस में हिंदूफोबिया से जुड़ी घटनाएं सामने आई थीं, जहां हिंदू छात्रों को धर्म के आधार पर अपमानित किया गया था।

2022 में न्यूजर्सी के एक मंदिर पर हमला किया गया था, जिसे नफरत फैलाने वाली घटना करार दिया गया था।

2023 में अमेरिका के एक स्कूल में हिंदू धर्म को 'जातिवाद' और 'भेदभावपूर्ण' कहकर पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा था, जिस पर भारतीय समुदाय ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।

यह विवाद ऐसे समय में हुआ है जब भारत सरकार पहले ही अमेरिकी आयोग USCIRF की रिपोर्ट को खारिज कर चुकी है। इस रिपोर्ट में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और हमलों का आरोप लगाया गया था। भारत सरकार ने इसे 'पूर्वाग्रही' और 'तथ्यहीन' करार दिया था। भारतीय समुदाय ने इस विवाद पर भी नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि अगर पश्चिमी विश्वविद्यालयों में इस तरह की पक्षपाती शिक्षा दी जाएगी, तो यह भारतीय छात्रों के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।

अब यह देखना होगा कि ह्यूस्टन विश्वविद्यालय इस विवाद पर क्या कदम उठाता है। यदि विश्वविद्यालय इस कोर्स में बदलाव नहीं करता, तो यह विवाद और अधिक बढ़ सकता है। वहीं, भारतीय-अमेरिकी समुदाय और हिंदू संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इस मामले को यूं ही नहीं छोड़ेंगे।

यह मुद्दा सिर्फ एक कोर्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अमेरिका में हिंदू धर्म को लेकर बनाए जा रहे पूर्वाग्रह और गलत धारणाओं को भी उजागर करता है। अब देखना होगा कि क्या इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई होगी या फिर यह विवाद भी अन्य मामलों की तरह धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

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