FRIDAY 02 MAY 2025
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Balochistan crisis: पाकिस्तान की अखंडता और चीन की दोस्ती पर मंडराता खतरा

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यह अब सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। दशकों से चल रहे अलगाववादी आंदोलन ने हाल ही में और अधिक आक्रामक रूप ले लिया है। ग्वादर बंदरगाह और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की वजह से यह क्षेत्र न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।

Balochistan crisis: पाकिस्तान की अखंडता और चीन की दोस्ती पर मंडराता खतरा
पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में उग्रवाद, अलगाववादी आंदोलन और बाहरी हस्तक्षेप ने देश की स्थिरता को गहरे संकट में डाल दिया है। यह न केवल पाकिस्तान की अखंडता के लिए चुनौती बन चुका है, बल्कि चीन के साथ उसकी दोस्ती पर भी गहरा असर डाल सकता है। बीजिंग ने यहां बड़े पैमाने पर निवेश किया है, लेकिन हालिया घटनाओं के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या चीन अपने कदम पीछे खींच सकता है?

बलूचिस्तान, पाकिस्तान की अनदेखी विरासत

बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44% हिस्सा है, लेकिन आबादी मात्र 5% है। यह अफगानिस्तान और ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाएं साझा करता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता इसके प्राकृतिक संसाधन हैं—तांबा, सोना, कोयला और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार। इसके बावजूद, यह पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा और उपेक्षित क्षेत्र बना हुआ है। दशकों से बलूच लोगों का यह आरोप रहा है कि पाकिस्तान सरकार उनके संसाधनों का दोहन करती रही है, लेकिन विकास की दौड़ में उन्हें पीछे छोड़ दिया गया है।

विद्रोह की जड़ें और बलूच अलगाववाद

बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन नया नहीं है। 1948 में पाकिस्तान में शामिल होने के बाद से ही बलूच राष्ट्रवादियों ने कई बार विद्रोह किया है। 1958, 1962, 1973 और अब 2000 के दशक से लगातार अलगाववादी संघर्ष जारी है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ हथियार उठा चुके हैं।

हाल ही में जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया, जिससे सुरक्षा एजेंसियों की चिंता और बढ़ गई है। इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि बलूच अलगाववादी संगठनों की गतिविधियां अब पहले से ज्यादा संगठित और प्रभावी हो रही हैं।

सीपीईसी और चीन की बढ़ती चिंता

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो कि चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है, बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जुड़ा हुआ है। यह परियोजना पाकिस्तान के आर्थिक विकास के लिए एक गेम-चेंजर के रूप में देखी जा रही थी। चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया, लेकिन बलूच अलगाववादी संगठनों द्वारा चीनी नागरिकों और परियोजनाओं को निशाना बनाए जाने से बीजिंग की चिंता बढ़ गई है।

ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने में चीन की प्रमुख भूमिका रही है, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि इस विकास से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। बल्कि, चीनी कंपनियों और मजदूरों की आमद ने स्थानीय बेरोजगारी को और बढ़ा दिया है। इसी असंतोष को बलूच अलगाववादी संगठनों ने हथियार बना लिया है।

चीन और पाकिस्तान के रिश्तों पर खतरा?

CPEC की सफलता बलूचिस्तान में स्थिरता पर निर्भर करती है। हाल ही में, पाकिस्तान में काम कर रहे लगभग 30,000 चीनी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर भी चीन गंभीर चिंता जता चुका है। बलूच विद्रोही केवल पाकिस्तान से अलगाव की मांग नहीं कर रहे, बल्कि इस क्षेत्र में चीनी प्रभाव का भी विरोध कर रहे हैं।

कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि चीन अपनी सेना को बलूचिस्तान में तैनात करने की योजना बना सकता है। हालांकि, पाकिस्तान इसके लिए तैयार होगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। लेकिन इन अटकलों ने यह साफ कर दिया है कि चीन और पाकिस्तान के बीच विश्वास की खाई बढ़ रही है।

बलूचिस्तान संकट पाकिस्तान के लिए बड़ा सिरदर्द
बलूचिस्तान की अस्थिरता पाकिस्तान के लिए बहुआयामी संकट बन चुकी है। एक ओर, उसे अलगाववादियों के बढ़ते प्रभाव को रोकना होगा, वहीं दूसरी ओर, चीन के निवेश और भरोसे को भी बनाए रखना होगा। अगर पाकिस्तान इस मुद्दे को जल्द नहीं सुलझा पाया, तो न केवल उसका क्षेत्रीय अखंडता संकट में आ जाएगी, बल्कि उसका सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार भी उससे दूर हो सकता है।

आने वाले समय में बलूचिस्तान का भविष्य क्या होगा? क्या पाकिस्तान इस संकट से उबर पाएगा, या फिर यह मामला और उलझता चला जाएगा? यह सवाल आने वाले महीनों में पाकिस्तान की राजनीति और अर्थव्यवस्था को तय करने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक होगा।

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