बिहार चुनाव में NDA गठबंधन की कैसी होगी भूमिका और कैसा रहेगा जातियों के वोट बैंक का गणित ?
बिहार में चुनाव में सीधा मुक़ाबला मुख्य रूप से दो गठबंधन सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्ष की महागठबंधन के बीच है। ऐसे में बात अगर एनडीए की करें तो इसमें सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बीजेपी के अलावा सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोकमंच शामिल है।

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीति दलों ने अभी से चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। इस चुनाव में सीधा मुक़ाबला मुख्य रूप से दो गठबंधन सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्ष की महागठबंधन के बीच है। ऐसे में बात अगर एनडीए की करें तो इसमें सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बीजेपी के अलावा सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोकमंच शामिल है। इस बीच चुनाव को आहट को देखते हुए राजनीतिक दल अपने पार्टी की जमीन को मजबूत करने में जुट गए है। इसके लिए इन पार्टियों का जातीय और क्षेत्रीय समीकरण समीकरण बैठाने का है। आइए अब आपको विस्तार से बताते है कि इन दलों का आधार क्या है।
सत्तारूढ़ NDA में बीजेपी की ताकत
इस कड़ी में सबसे पहले हम बात करते है बिहार कि एनडीए सरकार में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के बारे में। बिहार की विधानसभा में बिजपी के 80 सदस्य है, पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को 19.46 प्रतिशत वोट मिले थे। ऐसे में बात अगर पार्टी के प्रभाव की करें तो पार्टी सीमांचल में थोड़ी कमजोर है। राज्य में पार्टी का मुख्य वोट बैंक स्वर्ण जाति के साथ कुछ ओबीसी में शामिल जातियां भी है। इसके अलावा बीजेपी अब दलित और आती पिछड़ा वर्ग को साधने की जुगत में भी जुटा हुआ है।
जनता दल यूनाइटेड
बिहार में NDA गठबंधन में शामिल दलों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जेडीयू है। इस पार्टी के सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार पिछले लगभग दो दशक से बिहार की सत्ता संभाल रहे है। विधानसभा एन पार्टी के सदस्य है जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में 15.39 प्रतिशत वोट मिले थे। इस पार्टी कि मुख्य वोट बैंक कुर्मी और कोईरी है। इसके अलावा किच आती पिछड़ी और मुलिस्म समुदाय का भी साथ मिलता है।
लोक जनशक्ति पार्टी
पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। एक गोल के मुखिया पशुपति पारस और दूसरे गोल के मुखिया केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान है। बिहार में पासवान या दुसाध बड़ी आबादी वाली जाति है। इसलिए चिराग पासवान की पार्टी का मुख्य वोट बैंक भी यही जातियां है। जातीय सर्वेक्षण के अनुसार इस जाति की आबादी 5.31 फीसदी है। राज्य में यादव के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी जाति है। चिराग पासवान का जनता पर अच्छा प्रभाव है, लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन में इन्हें पांच सीट मिली थी और पार्टी सभी सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब रही। वही पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी को 5.66 फीसदी वोट मिले थे और पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब हुई थी।
मांझी की 'हम'
बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम पार्टी है जो आमतौर सबसे पिछड़ी जातियों में से एक मुसहर का मज़बूत तरीके से प्रतिनिधित्व करती है। राज्य में इस जाति की आबादी लगभग तीन प्रतिशत है। इसलिए मांझी का प्रभाव मुख्य रूप से रोहतास, जहानाबाद, नवादा, गया और औरंगाबाद जैसे जिलों में है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को चार सीट पर जीत जबकि 3 सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।
राष्ट्रीय लोक मंच
इस पार्टी का गठन वर्तमान में राज्यसभा सांसद उपेन्द्र कुशवाहा ने किया था। बिहार की राजनीति में उपेन्द्र कुशवाहा का प्रभाव कोईरी और कुशवाहा जाति पर माना जाता है। बिहार में इस जाति की आबादी लगभग 4.21 प्रतिशत है। इस लिहाज़ से इस बिरादरी के सबसे बड़े नेता बिहार में उपेन्द्र कुशवाहा माना जाते है। इस बिरादरी की ज़्यादातर आबादी पटना, भोजपुर, बक्सर, नालंदा रोहतास समेत आसपास के जिलो में रहती है। पिछले चुनाव में कुशवाहा राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के बैनरतले शामिल हुए थे लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाए थे।
ग़ौरतलब है कि इसी तरह विपक्ष की इंडिया गठबंधन की बिहार में मुख्य पार्टी आरजेडी है। जिसका सबसे बड़ा मजबूत वोट बैंक यादव और मुस्लिम समाज है। यही वजह है कि बिहार के विधानसभा चुनाव के कई महीने पहले से ही एनडीए बनाम विपक्ष की इंडिया गठबंधन जातीय समीकरण को साधने में जुट गए है।
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