सोनिया गांधी के एक फ़ैसले से हैरान थे मनमोहन सिंह, फिर 5 नेताओं को पछाड़ बने थे प्रधानमंत्री!
सोनिया गांधी के इनकार के बाद कांग्रेस की तरफ से प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शिवराज पाटिल, एनडी तिवारी और पी चिदंबरम पीएम की रेस में शामिल हो गए, लेकिन सोनिया ने इन 5 नेताओं की तुलना में मनमोहन को तरजीह दी. 5 नेताओं को पछाड़कर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे

तारीख़ 18 मई, साल था 2004… अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को मात देकर कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनने जा रही थी। सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना लगभग माना जा रहा था। तभी 10 जनपथ पहुँचे रामविलास पासवान को जानकारी मिली कि सोनिया पीएम नहीं बन रही हैं। उन्होंने ख़बर कंफर्म करने के लिए सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल को फ़ोन लगाया तो वहां से भी कोई पॉज़िटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला।
लेकिन जब वह 10 जनपथ से बाहर निकले तो मीडिया में यह ख़बर तेज़ी से फ़्लैश हो गई। हम गठबंधन के लोग अचंभित थे कि अब कौन प्रधानमंत्री बनेगा। लेकिन जल्द ही कांग्रेस की तरफ़ से सूचित किया गया कि जो नाम सामने आया, वह काफ़ी चौंकाने वाला था। वह नाम था डॉ. मनमोहन सिंह का। ख़ुद अपना नाम प्रधानमंत्री के लिए नामित होने पर मनमोहन सिंह हैरान थे, लेकिन सोनिया गांधी के मना करने के बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
उससे भी ज़्यादा हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जिस वक़्त मनमोहन सिंह के नाम को आगे बढ़ाया गया था, उस वक़्त 5 नेता पीएम बनने की रेस में आगे चल रहे थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सोनिया ने मनमोहन का नाम आगे बढ़ाया? चलिए बताते हैं।
सोनिया के इनकार के बाद 5 नेता थे दावेदार
सोनिया गांधी के इनकार के बाद सियासी गलियारों में 5 नेताओं को पीएम इन वेटिंग बताया गया। जिन नेताओं के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा शुरू हुई, उनमें प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, एनडीए तिवारी, शिवराज पाटील और पी चिदंबरम का नाम प्रमुख था।
प्रणब मुखर्जी के नाम को क्यों नकारा
प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के सबसे सीनियर नेता थे। इंदिरा के ज़माने से केंद्र में मंत्री पद पर रह चुके थे। पार्टी के अधिकांश नेता उन्हें इस कुर्सी पर बैठाना चाह रहे थे, लेकिन प्रणब पीएम नहीं बन पाए। पीएम न बनने को लेकर प्रणब ने कई बार अफ़सोस भी जताया। प्रणब मनमोहन सरकार में वित्त मंत्री और रक्षामंत्री रहे।
अर्जुन सिंह भी रह गए पीछे
अर्जुन सिंह गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे। राजीव और सोनिया गांधी से बेहतरीन ताल्लुकात थे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह सहयोगी पार्टियों के भी पसंदीदा नेता थे, लेकिन उनके नाम को भी पीछे कर दिया गया।
एनडी तिवारी के नाम को भी नकारा
यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रह चुके एनडी तिवारी भी पीएम पद के प्रमुख दावेदार थे। तिवारी को भी गांधी परिवार का करीबी माना जाता था, लेकिन आख़िरी वक़्त पर तिवारी भी कुर्सी से दूर रहे।
पी चिदंबरम का नाम भी हो गया था कैंसिल
पी चिदंबरम भी पीएम पद के प्रमुख दावेदार थे। उस वक्त कहा जाता था कि दक्षिण को साधने के लिए कांग्रेस पी चिदंबरम को पीएम बना सकती है, लेकिन उनके नाम पर भी आख़िरी वक़्त पर खेल हो गया।
तो ये पाँच नेता थे जिनका नाम पीएम बनने की रेस में आगे रहा, लेकिन मनमोहन ने सबको पछाड़कर कुर्सी अपने नाम की। उनके पीएम बनने के पीछे भी 3 फ़ैक्टर रहे। पहला फैक्टर मनमोहन सिंह का किसी गुट से न होना था। कांग्रेस में उस वक्त दक्षिण और उत्तर के साथ साथ कई गुट सक्रिय थे। नरसिम्हा राव की सरकार में इसी गुटबाज़ी की वजह से कांग्रेस पस्त हो गई थी, इसलिए सोनिया फिर से रिस्क नहीं लेना चाहती थीं। वहीं मनमोहन सिंह का राजनीतिक व्यक्ति न होना भी उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ। तीसरा फ़ैक्टर था मनमोहन सिंह का काम। वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह ने देश को आर्थिक तंगी से बाहर निकाला था, आर्थिक नीति और रोजगार से जुड़े कई वादे पूरे किए थे। मनमोहन सिंह की इसी क़ाबिलियत ने उन्हें कामयाबी दिलवाई।