THURSDAY 01 MAY 2025
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हथियारों का बड़ा बाजार, जानें कौन हैं टॉप 5 डिफेंस एक्सपोर्टर?

दुनिया में हथियारों का व्यापार एक विशाल और जटिल उद्योग है, जिसमें कुछ प्रमुख देश प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा ने भारत-अमेरिका सामरिक संबंधों में नए आयाम जोड़े हैं, जिससे यह संभावना बढ़ी है कि भविष्य में अमेरिका, भारत को हथियार बेचने में रूस को पीछे छोड़ सकता है।

हथियारों का बड़ा बाजार, जानें कौन हैं टॉप 5 डिफेंस एक्सपोर्टर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के साथ भारत और अमेरिका के बीच नए सामरिक रिश्तों की शुरुआत हो चुकी है। यह संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में अमेरिका, भारत को हथियार बेचने के मामले में रूस को पीछे छोड़ सकता है। भारत, जो लंबे समय से अपने रक्षा आयात के लिए रूस पर निर्भर रहा है, अब अपनी शर्तों पर हथियार खरीदने की नीति अपना रहा है। हालांकि, भारत अभी भी बड़े पैमाने पर रूसी हथियारों पर निर्भर है, लेकिन अमेरिका, फ्रांस और इजरायल जैसे देशों के साथ बढ़ते रक्षा संबंध इस व्यापार में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की मार्च 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक था। इस दौरान भारत के हथियार आयात में 4.7% की वृद्धि दर्ज की गई, और रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा, जिसकी हिस्सेदारी 36% थी। भारत के लिए इतने हथियार खरीदने की आवश्यकता उसकी जटिल भू-राजनीतिक स्थिति के कारण बनी हुई है। पाकिस्तान और चीन के साथ लगातार सीमा विवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा को देखते हुए भारत को अपने रक्षा बलों को अत्याधुनिक बनाए रखना पड़ता है। चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य ताकत इस क्षेत्र को हथियारों की होड़ का केंद्र बना रही है, जिससे दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे खतरनाक इलाका बनता जा रहा है।
दुनिया के हथियार व्यापार पर नजर डालें तो 2018 से 2022 के बीच, पांच सबसे बड़े हथियार निर्यातक देश अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी थे। इन पांच देशों ने मिलकर दुनिया के कुल हथियार निर्यात का 76% आपूर्ति किया। साल 2024 में, अमेरिका ने 318.7 बिलियन डॉलर के हथियार बेचे, जो 2023 के मुकाबले 29% अधिक था। यह आंकड़ा दर्शाता है कि वैश्विक हथियार उद्योग कितना विशाल और प्रभावशाली है।
अमेरिका: दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक
2023 तक, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बना हुआ है। 2018-2022 के बीच वैश्विक हथियार निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 40% थी। यह हथियार उद्योग अमेरिका के लिए सिर्फ एक व्यापार नहीं बल्कि एक रणनीतिक शक्ति भी है, जो उसे वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली बनाता है। अमेरिकी हथियारों के सबसे बड़े खरीदार सऊदी अरब, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कतर, दक्षिण कोरिया, कुवैत, यूके, यूएई, नीदरलैंड और नॉर्वे हैं। अमेरिकी हथियार उद्योग को उसकी रक्षा कंपनियां मजबूत बनाती हैं। लॉकहीड मार्टिन, बोइंग और रेथियॉन जैसी कंपनियां अमेरिकी रक्षा उद्योग की रीढ़ हैं, जो आधुनिक लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और अन्य उन्नत सैन्य उपकरणों का निर्माण करती हैं। अमेरिका में हथियारों की बिक्री दो प्रमुख तरीकों से होती है – पहली, सीधे कंपनियों द्वारा विदेशी सरकारों को बिक्री, जिसे वाणिज्यिक बिक्री कहा जाता है और दूसरी, विदेशी सैन्य बिक्री जिसमें अमेरिकी सरकार ही मध्यस्थ होती है। इन दोनों तरीकों से हथियारों की बिक्री के लिए अमेरिकी सरकार की मंजूरी आवश्यक होती है।
रूस दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है, लेकिन उसके निर्यात में लगातार गिरावट देखी जा रही है। 2012 में रूस की वैश्विक हथियार निर्यात में हिस्सेदारी 24.1% थी, जो 2021 में घटकर 18.6% रह गई। इसका मुख्य कारण यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंध हैं, जिससे रूस के हथियारों की मांग पर असर पड़ा है। हालांकि, भारत, चीन और मिस्र अभी भी रूस के सबसे बड़े हथियार खरीदार बने हुए हैं। रूसी रक्षा कंपनियां, जिनमें रोसोबोरोनएक्सपोर्ट, अल्माज़-एंटे और यूनाइटेड शिपबिल्डिंग कॉर्पोरेशन शामिल हैं, सरकारी स्वामित्व वाली हैं और रूस के हथियार निर्यात का मुख्य आधार हैं। भारत के साथ रूस के सैन्य संबंध दशकों पुराने हैं, और भारत अभी भी रूसी एस-400 मिसाइल सिस्टम, सुखोई लड़ाकू विमान और अन्य सैन्य उपकरणों का बड़ा आयातक है।
फ्रांस तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक
फ्रांस ने पिछले कुछ वर्षों में अपने हथियार निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। 2018-2022 में, वैश्विक हथियार निर्यात में फ्रांस की हिस्सेदारी 11% थी, और इस अवधि में उसके हथियारों के निर्यात में 44% की वृद्धि हुई। 2022 में, फ्रांस ने 27 बिलियन यूरो के हथियार बेचे, जो 2021 के 11.7 बिलियन यूरो से अधिक था। फ्रांस के रक्षा उद्योग की प्रमुख कंपनियां डसॉल्ट एविएशन, एयरबस और थेल्स हैं। फ्रांस मुख्य रूप से राफेल लड़ाकू जेट, स्कॉर्पीन पनडुब्बी और लेक्लेर टैंक जैसे उन्नत हथियारों का निर्यात करता है। भारत, मिस्र, कतर और संयुक्त अरब अमीरात फ्रांस के प्रमुख हथियार खरीदार हैं।
चीन चौथा सबसे बड़ा निर्यातक
चीन दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। 2018-2022 के बीच, वैश्विक हथियार निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 5.2% थी। हालांकि, चीन अन्य देशों की तरह ज्यादा हथियार आयात नहीं करता क्योंकि उसने रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए विदेशी तकनीकों को अपनाकर घरेलू उत्पादन को मजबूत कर लिया है। चीन का 80% हथियार निर्यात एशिया और ओशिनिया के देशों में होता है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार चीन के मुख्य ग्राहक हैं। चीन की प्रमुख रक्षा कंपनियां चाइना नॉर्थ इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन और चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन हैं, जो देश के रक्षा उद्योग की रीढ़ हैं।
जर्मनी यूरोप का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक
जर्मनी दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। 2018-2022 में वैश्विक हथियार बिक्री में उसकी हिस्सेदारी 4.2% थी। 2023 में, जर्मनी का हथियार निर्यात रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। यूक्रेन, नॉर्वे, हंगरी, ब्रिटेन और अमेरिका जर्मन हथियारों के सबसे बड़े आयातक हैं। जर्मनी के रक्षा उद्योग को राइनमेटल, एयरबस और क्रॉस-मैफी वेगमैन जैसी कंपनियां मजबूती देती हैं। जर्मनी के मुख्य हथियार ग्राहक यूरोप और एशिया में हैं, जिसमें मिस्र प्रमुख आयातक है।
हथियारों का यह विशाल व्यापार न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन और भू-राजनीतिक रणनीतियों में भी अहम भूमिका निभाता है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी जैसे देश हथियार बेचकर अरबों डॉलर कमा रहे हैं। लेकिन इस प्रतिस्पर्धा का एक दूसरा पक्ष भी है – हथियारों की यह दौड़ विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा भी बन सकती है।
भारत जैसे देश अपनी सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए आधुनिक हथियार खरीद रहे हैं, लेकिन अब स्वदेशी रक्षा उत्पादन को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारत ने रक्षा उपकरणों के निर्माण में बड़ा निवेश किया है। लेकिन सवाल यह है कि हथियारों की बढ़ती होड़ क्या दुनिया को युद्ध की ओर धकेल रही है? यह बहस हमेशा जारी रहेगी, लेकिन एक बात तय है कि हथियारों का बाजार लगातार बढ़ रहा है और इसका प्रभाव वैश्विक राजनीति पर गहराई से पड़ रहा है।

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