THURSDAY 01 MAY 2025
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2075 तक इन देशों से क्यों खत्म हो जाएगी मुस्लिम आबादी? जानिए चौंकाने वाले कारण!

कुछ छोटे देशों में 2075 तक मुस्लिम आबादी के पूरी तरह खत्म हो जाने की संभावनाएं बन सकती हैं। रिपोर्ट्स, आंकड़े और विशेषज्ञों के विश्लेषणों के आधार पर बताया गया है कि माइग्रेशन, धार्मिक परिवर्तन, सामाजिक और राजनीतिक दबाव जैसे कारण इस बदलाव के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

2075 तक इन देशों से क्यों खत्म हो जाएगी मुस्लिम आबादी? जानिए चौंकाने वाले कारण!
एक ऐसा सवाल जिसने पूरी दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है क्या कुछ देशों से मुस्लिम आबादी पूरी तरह गायब हो जाएगी? यह कोई अफवाह नहीं, बल्कि एक गंभीर शोध और वैश्विक रिपोर्ट्स पर आधारित विश्लेषण है, जो बताता है कि आने वाले कुछ दशकों में कुछ देशों की जनसंख्या संरचना इतनी तेजी से बदलेगी कि वहां शायद ही कोई मुसलमान बचे। क्या यह सिर्फ कल्पना है या एक कड़वा भविष्य?

दुनिया में इस समय करीब 1.9 अरब मुसलमान हैं। यह संख्या ईसाई धर्म के बाद दूसरी सबसे बड़ी धार्मिक जनसंख्या है, और तेजी से बढ़ भी रही है। इस्लाम सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म माना जाता है। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कुछ देशों में मुस्लिमों की संख्या पूरी तरह खत्म हो जाए? सवाल चौंकाने वाला है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई और आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाते हैं।

जनसंख्या वृद्धि बनाम जनसंख्या संकुचन कौन जीतेगा?

Pew Research Center की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम जनसंख्या साल 2050 तक 2.76 अरब हो सकती है। यानी आज की तुलना में कहीं अधिक। इसकी वजह है मुस्लिम समाज में जन्म दर का अधिक होना, युवा जनसंख्या का अनुपात अधिक होना और कुछ हद तक धर्मांतरण भी। लेकिन यहां पर एक उलझन पैदा होती है जब पूरी दुनिया में मुस्लिमों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है, तो कुछ देशों में उनकी संख्या घट कैसे सकती है?

छोटे देश, छोटी आबादी, और बड़ा असर

कुछ छोटे और माइक्रो देशों में मुस्लिमों की संख्या पहले से ही बेहद कम है। जैसे माइक्रोनेशिया, नाउरू, तुवालु, चेक गणराज्य और एस्टोनिया। इन देशों में मुस्लिम जनसंख्या 0.1% से भी कम है। इन जगहों पर न तो मुस्लिम प्रवास होता है, और न ही धर्मांतरण की गति तेज है। यहां का समाज अत्यधिक सेक्युलर है और अधिकतर आबादी ईसाई या नास्तिक विचारधारा को मानती है। अगर आने वाले सालों में यहां कोई बड़ा माइग्रेशन या धार्मिक ट्रेंड न बदला, तो 2075 तक इन देशों में शून्य प्रतिशत मुस्लिम आबादी देखने को मिल सकती है।

मुस्लिमों के अस्तित्व पर संकट

कुछ देशों में मुस्लिमों की आबादी सामाजिक और राजनीतिक कारणों से घटती जा रही है। सबसे बड़ा उदाहरण है म्यांमार, जहां रोहिंग्या मुसलमानों को दशकों से प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। लाखों रोहिंग्या म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश और दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं। इसी तरह, सीरिया और यमन जैसे देश, जो एक समय मुस्लिम बाहुल्य थे, वहां गृहयुद्ध और आतंकवाद ने जनसंख्या का संतुलन ही बिगाड़ दिया। लाखों लोग पलायन कर गए। इन देशों में 2075 तक मुस्लिम आबादी पूरी तरह समाप्त न हो, पर बेहद कम जरूर हो सकती है।

🇪🇺 यूरोप में सेक्युलरिज्म का बढ़ता असर

यूरोपीय देश जैसे कि स्वीडन, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया, लातविया, स्लोवेनिया आदि में मुस्लिम जनसंख्या पहले से ही नगण्य है। यहां की आबादी तेजी से धर्म-निरपेक्ष (Secular) होती जा रही है। शादी-ब्याह के माध्यम से धर्मांतरण या धर्ममिश्रण (religious dilution) बढ़ रहा है। अगर अगली पीढ़ियों ने इस्लाम को अपनाने या बनाए रखने में रुचि नहीं दिखाई, तो वहां मुस्लिम पहचान धीरे-धीरे विलुप्त हो सकती है।

मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा आज प्रवास कर रहा है अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देशों में। पर क्या यह माइग्रेशन उन्हें टिकाऊ भविष्य देगा? कुछ देशों में माइग्रेशन के बाद धार्मिक पहचान बनाए रखना कठिन हो जाता है, विशेषकर जब आने वाली पीढ़ियां स्थानीय संस्कृति में घुलने लगती हैं। अगर माइग्रेशन तो हो, लेकिन धार्मिक विरासत न बचाई जाए, तो वहां इस्लाम एक पहचान के रूप में धीरे-धीरे कमजोर हो सकता है।

क्या भारत में भी मुस्लिम खत्म हो जाएंगे?
नहीं, फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं है कि भारत जैसे देश में मुस्लिमों की आबादी खत्म हो सकती है। भारत में इस समय करीब 20 करोड़ मुस्लिम हैं, जो कुल आबादी का लगभग 14-15% है। हालांकि देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और सामाजिक तनाव बढ़ रहे हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या को पूरी तरह समाप्त या नगण्य करना असंभव जैसा है।

ऐसे में सवाल उठता है कि 2075 तक कुछ देश मुस्लिम-मुक्त हो जाएंगे? तो इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। लेकिन जो आंकड़े और ट्रेंड सामने आ रहे हैं, वे इस संभावना की ओर जरूर इशारा करते हैं। खासकर उन देशों में जहां मुस्लिमों की संख्या पहले से ही बहुत कम है, और जहां धार्मिक स्वीकार्यता या सहिष्णुता कम हो रही है। हालांकि पूरी दुनिया से इस्लाम या किसी भी धर्म को समाप्त कर पाना संभव नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय रूप से धार्मिक जनसंख्या का विलुप्त होना एक सामाजिक सत्य है, जिसकी झलक हम आज ही देख सकते हैं।

अगर सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक ट्रेंड्स ऐसे ही चलते रहे तो आने वाले 50 सालों में कुछ देशों में मुस्लिमों की उपस्थिति इतनी कम हो जाएगी कि उनका अस्तित्व वहां केवल आंकड़ों में रह जाएगा। और यह केवल इस्लाम के साथ नहीं, बल्कि दूसरे अल्पसंख्यक धर्मों के साथ भी हो सकता है।
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