फ्रांस ने अमेरिका को क्यों दिया था Statue of Liberty? अब कर रहा वापसी की मांग!
Statue of Liberty सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि स्वतंत्रता, लोकतंत्र और न्याय का प्रतीक है। फ्रांस ने इसे 1886 में अमेरिका को गिफ्ट किया था, लेकिन अब इसे वापस मांग रहा है। फ्रांस के एक सांसद का कहना है कि अमेरिका अब इस ऐतिहासिक धरोहर के काबिल नहीं रह गया है।

अमेरिका में 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' (Statue of Liberty) न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि स्वतंत्रता, लोकतंत्र और न्याय का प्रतीक भी है। यह विश्व भर से आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन हाल ही में फ्रांस में एक नई बहस छिड़ गई है। यूरोपीय संसद के सदस्य और फ्रांस की वामपंथी पार्टी के सह-अध्यक्ष राफेल ग्लुक्समान ने अमेरिका से 'Statue of Liberty' वापस करने की मांग कर दी है।
ग्लुक्समान का कहना है कि "अमेरिका अब इस ऐतिहासिक धरोहर के योग्य नहीं रहा और इसे वापस फ्रांस को लौटा देना चाहिए।" उनकी इस मांग ने इतिहास प्रेमियों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच नई चर्चा को जन्म दे दिया है। आखिर, यह प्रतिमा अमेरिका को उपहार में क्यों दी गई थी, और अब इसे वापस क्यों मांगा जा रहा है? आइए, इस ऐतिहासिक घटना के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं।
फ्रांस ने दिया था अमेरिका को 'Statue of Liberty'?
अमेरिका और फ्रांस के रिश्ते लंबे समय से ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं। अमेरिका की स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर, फ्रांस ने 1886 में 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' को अमेरिका को एक उपहार के रूप में दिया।
यह उपहार केवल मित्रता की निशानी नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी छिपा था। फ्रांस ने इसे अमेरिका को लोकतंत्र और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में भेंट किया था। इस प्रतिमा को फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडरिक ऑगस्टे बार्थोल्डी (Frédéric Auguste Bartholdi) ने डिजाइन किया था, और इसका निर्माण गुस्ताव एफिल (Gustave Eiffel) द्वारा किया गया था, जिन्होंने प्रसिद्ध एफिल टॉवर का भी निर्माण किया था।
इस मूर्ति का उद्देश्य था अमेरिका और फ्रांस के लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रदर्शित करना, क्योंकि उस समय फ्रांस भी अपने देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहा था।
कैसे पहुंचा यह विशाल स्टैच्यू अमेरिका?
अब सवाल उठता है कि इतनी विशाल प्रतिमा अमेरिका तक कैसे पहुंची? स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की कुल ऊंचाई 93 मीटर (305 फीट) है और इसका वजन लगभग 204 टन है। जब इसे अमेरिका भेजने का समय आया, तो इसे 350 अलग-अलग टुकड़ों में विभाजित कर दिया गया और इन टुकड़ों को 214 लकड़ी के बक्सों में पैक करके एक विशाल जहाज 'इसरे' (Isère) से अमेरिका भेजा गया। यह प्रतिमा 17 जून 1885 को न्यूयॉर्क बंदरगाह पहुंची।
इसके बाद, इसे फिर से जोड़ने में करीब चार महीने का समय लगा, और 26 अक्टूबर 1886 को इसे आधिकारिक रूप से न्यूयॉर्क के लिबर्टी आइलैंड (Liberty Island) पर स्थापित किया गया। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड (Grover Cleveland) ने इसका उद्घाटन किया था।
Statue of Liberty का महत्व
इस प्रतिमा का डिजाइन स्वतंत्रता और न्याय के मूल्यों को दर्शाने के लिए बहुत ही सोच-समझकर बनाया गया था, इसकी ऊँचाई – 93 मीटर (305 फीट), वजन – 204 टन है। वही धातु की बात करें तो इसे तांबे से बनाया गया है। जबकि इसके मुकुट की 7 किरणें दुनिया के 7 महाद्वीपों और 7 समुद्रों का प्रतीक। वही टूटी हुई जंजीरें गुलामी से आजादी की निशानी है। वही हाथ में मशाल रोशनी और स्वतंत्रता का प्रतीक है। इसका आधिकारिक नाम "Liberty Enlightening the World" (दुनिया को रोशन करने वाली स्वतंत्रता) रखा गया था।
अब क्यों उठ रही है इसे वापस लेने की मांग?
हाल ही में, अमेरिका और फ्रांस के संबंधों में तनाव देखने को मिल रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, अमेरिका की व्यापारिक नीतियों में बड़ा बदलाव आया, जिससे यूरोप और अमेरिका के संबंधों पर असर पड़ा। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की भूमिका को लेकर भी यूरोपीय देशों में असहमति देखने को मिली।
फ्रांस की वामपंथी पार्टी के नेता राफेल ग्लुक्समान का कहना है कि अमेरिका ने अब उन मूल्यों से समझौता कर लिया है, जिनका प्रतिनिधित्व 'Statue of Liberty' करती है। वे मानते हैं कि "आज का अमेरिका स्वतंत्रता और लोकतंत्र के प्रतीक के लायक नहीं रह गया है।" हालांकि, अमेरिका की सरकार ने इस मांग को अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
तकनीकी रूप से, अमेरिका के पास इसे लौटाने की कोई बाध्यता नहीं है, क्योंकि यह उसे आधिकारिक तौर पर उपहार में दिया गया था। हालांकि, अगर यह विवाद और बढ़ता है, तो यह अमेरिका और फ्रांस के रिश्तों पर प्रभाव डाल सकता है। वही विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाजी हो सकती है, लेकिन यदि भविष्य में अमेरिका और फ्रांस के बीच संबंध और बिगड़ते हैं, तो इस प्रतिमा पर नए सिरे से बहस छिड़ सकती है।
'Statue of Liberty' केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र का एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह फ्रांस और अमेरिका के बीच दोस्ती का प्रतीक था, लेकिन बदलते समय के साथ अब इसे लेकर नए विवाद खड़े हो रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका इस मांग को गंभीरता से लेता है या नहीं। क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाजी है या फिर वास्तव में इस ऐतिहासिक मूर्ति को फ्रांस में फिर से देखने का सपना पूरा होगा?
आने वाले समय में इस मुद्दे पर और बहस हो सकती है, लेकिन एक बात साफ है – Statue of Liberty की कहानी आज भी लोगों को उतनी ही रोमांचक लगती है, जितनी 1886 में थी!
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