एक सड़क पर बसा देश तुवालू, जिसका सफर हो सकता है कभी भी खत्म
तुवालू एक ऐसा देश है जिसकी कहानी जितनी छोटी है, उतनी ही गहरी और चौंकाने वाली भी। प्रशांत महासागर में बसा यह देश केवल 12 किलोमीटर लंबा और 200 मीटर चौड़ा है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती है—समुद्र में डूबना।

ज़रा सोचिए, कैसा हो अगर आप एक देश की सैर करें और वह देश आपके एक दिन के कदमों में खत्म हो जाए? एक सड़क, दोनों तरफ समुद्र और बीच में जीवन की लड़ाई लड़ता एक पूरा देश। जी हां, हम बात कर रहे हैं तुवालू (Tuvalu) की — एक ऐसा देश जो अपने वजूद के लिए हर दिन समुद्र से संघर्ष कर रहा है।
तुवालू दुनिया का चौथा सबसे छोटा देश
प्रशांत महासागर में स्थित तुवालू, क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया का चौथा सबसे छोटा देश है। इसकी लंबाई सिर्फ 12 किलोमीटर है और चौड़ाई महज़ 200 मीटर। यानी एक आम व्यक्ति अगर चाहे, तो इस देश का चक्कर पैदल भी लगा सकता है। लेकिन तुवालू की कहानी केवल उसके छोटे आकार की नहीं है — ये एक बहुत बड़ी चेतावनी है जलवायु परिवर्तन की।
हर दिन डूबने के डर से जीता है तुवालू
तुवालू की सबसे बड़ी चुनौती है समुद्र का बढ़ता जलस्तर। यह देश समुद्र तल से सिर्फ 2 से 4 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग और बर्फ पिघलने की गति इसी तरह जारी रही, तो अगले 50 सालों में तुवालू पूरी तरह डूब सकता है। वहां के स्कूलों में बच्चे सिर्फ भूगोल नहीं पढ़ते, वे यह भी सीखते हैं कि किस तरह एक दिन उनका देश नक्शे से मिट सकता है।
तुवालू की सरकार ने हाल ही में एक अजीब-सा लेकिन जरूरी कदम उठाया है — "Virtual Tuvalu". इसका मतलब है कि जब देश डूब जाएगा, तब भी वह इंटरनेट पर ज़िंदा रहेगा। इसकी सरकार अपने पूरे देश को डिजिटल फॉर्मेट में संरक्षित कर रही है — हर सड़क, हर घर, हर मंदिर और हर सरकारी इमारत को स्कैन किया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि कभी एक देश हुआ करता था — तुवालू।
एक सड़क पर देश और रनवे पर क्रिकेट
तुवालू का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा इतना छोटा है कि वहाँ हफ्ते में सिर्फ 2-3 फ्लाइट्स आती हैं। लेकिन जब फ्लाइट नहीं होती, तो वही रनवे बच्चों का क्रिकेट मैदान बन जाता है। सुबह हवाई जहाज आता है, शाम को वहीं शादी की पार्टी होती है। इस देश में ज़मीन इतनी कम है कि हर टुकड़े का उपयोग होता है — कभी समारोह के लिए, कभी सभा के लिए और कभी खेलने के लिए।
तुवालू का प्रधानमंत्री सच्चे अर्थों में धरती की आवाज़ बन चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में वे लगातार ये सवाल उठाते हैं “क्या आप एक पूरे देश को डूबते हुए देख सकते हैं, और चुप रह सकते हैं?” COP समिट्स (Climate Change Summits) में तुवालू का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता अक्सर समुद्र में खड़े होकर भाषण देते हैं, ताकि दुनिया उनकी स्थिति समझ सके।
तुवालू की संस्कृति, वहाँ की लोककथाएँ, वहाँ का संगीत, सब कुछ विलुप्त होने की कगार पर है। यहाँ की महिलाएं पारंपरिक डांस ‘फातेले’ करती हैं, जो न केवल मनोरंजन बल्कि इतिहास और संघर्ष का प्रतीक है। लेकिन जैसे-जैसे समुद्र आगे बढ़ता है, ये परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं। तुवालू हमें सिखाता है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ मौसम की बात नहीं है — यह अस्तित्व का सवाल है। जब आप अपने एसी कमरे में बैठकर “बदलते मौसम” पर चर्चा करते हैं, तो तुवालू के लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। ये कहानी सिर्फ उनके देश की नहीं, हमारी दुनिया की है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर अभी से दुनिया के देश कार्बन उत्सर्जन को कम करें, तो तुवालू जैसे देशों को बचाया जा सकता है। लेकिन अगर यही हाल रहा, तो यह देश आने वाले दशकों में नक्शे से मिट जाएगा और रह जाएगी बस एक कहानी — एक देश जो एक सड़क पर बसा था और समुद्र ने निगल लिया।
तुवालू एक ऐसा देश है जो अपने वजूद को हर दिन जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। ये सिर्फ एक देश की कहानी नहीं है, बल्कि मानवता के भविष्य की चेतावनी है। अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो एक-एक करके कई तुवालू डूबते चले जाएंगे।
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