THURSDAY 01 MAY 2025
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मुगल हरम की हकीकत, जहाँ ऐश, रुतबा और साजिशें साथ-साथ चलती थीं

मुगल हरम इतिहास का एक रहस्यमयी हिस्सा रहा है, जहाँ बादशाहों की पत्नियाँ, कनीजें और सेविकाएँ निवास करती थीं। हरम केवल विलासिता का केंद्र नहीं था, बल्कि यह सत्ता संघर्ष, साजिशों और राजनीति का भी अखाड़ा था। यहाँ की महिलाएँ शाही ठाठ-बाट में रहती थीं, लेकिन उनकी स्वतंत्रता पूरी तरह खत्म हो जाती थी। कुछ महिलाएँ बादशाह की प्रिय बनकर सत्ता में प्रभावशाली हो गईं, जैसे नूरजहाँ और जहाँआरा बेगम, लेकिन अधिकतर का जीवन हरम की ऊँची दीवारों के भीतर ही समाप्त हो जाता था।

मुगल हरम की हकीकत, जहाँ ऐश, रुतबा और साजिशें साथ-साथ चलती थीं

मुगलों का हरम, एक ऐसा शब्द जिसने सदियों से इतिहासकारों, लेखकों और आम जनता की जिज्ञासा को जगाए रखा है। यह केवल एक भोग-विलास की जगह नहीं थी, बल्कि यह राजनीति, साजिशों, प्रेम, ईर्ष्या और शक्ति संतुलन का अखाड़ा भी था। मुगल बादशाहों की शानो-शौकत के पीछे छुपी इस दुनिया में क्या कुछ घटता था? कौन सी महिलाएँ यहाँ जगह पाती थीं? और उनकी ज़िंदगी किस तरह से गुजरती थी? इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा।

हरम नाम के पीछे छिपा अर्थ

'हरम' शब्द अरबी भाषा से आया है, जिसका अर्थ है 'पवित्र' या 'वर्जित क्षेत्र'। इस शब्द का उपयोग मुगलों के महलों में स्थित उस हिस्से के लिए किया जाता था, जहाँ बादशाह की पत्नियाँ, रखैलें (कनीजें), उनकी बेटियाँ, माँ और अन्य महिला सेवकाएँ रहा करती थीं। यह हिस्सा पुरुषों के लिए निषिद्ध था, केवल कुछ खास नौकरों, हिजड़ों (क्लीव) और बादशाह को ही यहाँ आने की अनुमति थी।

बाबर से लेकर अकबर तक हरम का विस्तार

मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले बाबर ने केवल चार वर्षों तक शासन किया, इसलिए उनके दौर में हरम एक विस्तृत और व्यवस्थित रूप में नहीं था। हालांकि, उनके पोते अकबर ने इस पर विशेष ध्यान दिया। अकबर के समय में हरम न केवल विलासिता का केंद्र था बल्कि यह सत्ता और राजनीति का भी प्रमुख हिस्सा बन गया था। इसमें सैकड़ों महिलाएँ रहती थीं, जिनकी सुरक्षा के लिए हिजड़ों और विश्वासपात्र नौकरों की नियुक्ति की जाती थी।

कौन सी महिलाएँ हरम में होती थीं शामिल?

हरम में प्रवेश पाने वाली महिलाएँ अलग-अलग रास्तों से यहाँ पहुँचती थीं जिसमें पहली होती थई राजसी महिलाएँ। बादशाह की पत्नियाँ, माँ, बहनें और अन्य रिश्तेदार महिलाएँ। दूसरी होती थी कनीजें, बादशाह के मनोरंजन के लिए लाई गईं युवा और खूबसूरत महिलाएँ, जिन्हें या तो युद्धों में बंदी बनाया जाता था या अन्य देशों से खरीदा जाता था। तीसरी होती थी तोहफे में मिली महिलाएँ, कई बार अन्य राजाओं या विदेशी शासकों द्वारा अपने संबंध मजबूत करने के लिए सुंदर महिलाओं को मुगलों को उपहार स्वरूप दिया जाता था। और कुछ होती थी दासियाँ और सेविकाएँ, यानी हरम की महिलाओं की सेवा करने के लिए प्रशिक्षित नौकरानियाँ, जो हर रोज़ उनके आराम और देखभाल का ध्यान रखती थीं।

हरम की जिंदगी बाहर से जितनी भव्य लगती थी, अंदर से उतनी ही जटिल थी। यहाँ का हर दिन नया था, लेकिन उसमें बंधनों की एक अनदेखी दीवार हमेशा खड़ी रहती थी। हरम की महिलाएँ राजसी ठाट-बाट में रहती थीं। मनूची नाम के एक इतालवी यात्री, जिन्हें मुगल हरम को देखने का अवसर मिला था, उन्होंने लिखा कि हरम की महिलाओं के लिए हर रोज़ नए कपड़े आते थे। वे एक बार पहने हुए कपड़ों को दोबारा नहीं पहनती थीं। उनके लिए शानदार महलनुमा कमरे होते थे, जिनमें झरने, फव्वारे और बाग-बगीचे होते थे। हरम में महिलाओं को समय बिताने के लिए कई तरह की कलाओं में निपुण बनाया जाता था। इनमें नृत्य, गायन, शेरो-शायरी, तीरंदाजी, गजलों का आनंद लेना और बागवानी शामिल थे। अकबर के हरम में तो कुछ महिलाएँ घुड़सवारी और तलवारबाजी तक सीखती थीं।

एक बार जो महिला हरम में आ गई, उसका बाहरी दुनिया से संपर्क लगभग खत्म हो जाता था। उसे महल से बाहर जाने की अनुमति नहीं होती थी। हरम की सुरक्षा इतनी कड़ी होती थी कि किसी भी पुरुष का वहाँ प्रवेश असंभव था, सिवाय बादशाह और हिजड़ों के। अगर किसी महिला को बाहर जाना भी होता, तो उनके साथ विशेष सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाते। हरम में रहने वाली हर कनीज की इच्छा होती थी कि वह बादशाह की पसंदीदा बन जाए। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। खूबसूरती के साथ-साथ नृत्य, संगीत और व्यवहार कुशलता का होना भी आवश्यक था। जो महिलाएँ बादशाह की पसंदीदा बन जाती थीं, उन्हें विशेष दर्जा प्राप्त हो जाता था और उनकी सेवा में सैकड़ों नौकर लगाए जाते थे।


साजिशों, षड्यंत्रों और सत्ता संघर्ष का अड्डा

हरम केवल विलासिता का केंद्र नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक षड्यंत्रों और सत्ता संघर्षों का अड्डा भी था। जब एक बादशाह की कई पत्नियाँ, रखैलें (कनीजें) और उनकी संताने एक ही महल में रहती थीं, तो आपसी ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा का जन्म भी स्वाभाविक था। कई बार हरम के अंदर चलने वाली साजिशों ने मुगल साम्राज्य की राजनीति को प्रभावित किया। दरअसल हरम में प्रवेश करने वाली हर महिला की महत्वाकांक्षा होती थी कि वह बादशाह की प्रिय बने। लेकिन यह स्थान पाना आसान नहीं था। इसके लिए सौंदर्य, बुद्धिमत्ता और कला में दक्ष होना पड़ता था। जिन महिलाओं को बादशाह का प्रेम और विश्वास मिलता था, वे न केवल हरम की सबसे प्रभावशाली हस्ती बन जाती थीं, बल्कि कई बार वे साम्राज्य की राजनीति में भी हस्तक्षेप करने लगती थीं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ का है। वह केवल हरम में ही नहीं, बल्कि पूरे साम्राज्य में सबसे प्रभावशाली महिला थीं। उन्होंने न केवल जहाँगीर का हृदय जीता, बल्कि सत्ता के निर्णयों में भी उनकी सलाह महत्वपूर्ण मानी जाती थी। नूरजहाँ ने अपने पिता और भाई को उच्च पदों पर नियुक्त करवाया और मुगल शासन में गहरी पकड़ बना ली।

इसी तरह शाहजहाँ के शासनकाल में मुमताज़ महल का प्रभाव हरम तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णयों में भी अपनी राय दी। उनके बाद, शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा बेगम हरम और दरबार दोनों में प्रभावशाली महिला बनीं।

हरम में आपसी ईर्ष्या और षड्यंत्र

हरम में शक्ति के लिए चल रही खींचतान कभी-कभी हिंसक रूप भी ले लेती थी। अकबर के समय में हरम में आपसी ईर्ष्या इतनी बढ़ गई थी कि कई बार षड्यंत्रों के कारण कुछ महिलाओं को ज़हर देकर मार दिया जाता था या उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। शाहजहाँ के बेटों के बीच उत्तराधिकार का संघर्ष हरम से ही शुरू हुआ था। शाहजहाँ की पत्नी मुमताज़ महल के बेटे दारा शिकोह को उनकी बहन जहाँआरा का समर्थन प्राप्त था, जबकि औरंगज़ेब को दूसरी पत्नी की बेटी रोशनआरा का समर्थन मिला। इसी कारण हरम दो गुटों में बँट गया और सत्ता की लड़ाई ने मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया।

वैसे आपको बता दूं कि हरम में रहने वाली महिलाओं का जीवन जितना ऐश्वर्यशाली था, उतना ही सीमित भी था। जो महिलाएँ एक बार हरम में आ गईं, उनके लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। केवल विशेष परिस्थितियों में ही कुछ महिलाएँ हरम से बाहर जा सकती थीं, जैसे कि किसी अन्य राजा से विवाह होने पर या फिर बादशाह द्वारा विशेष रूप से अनुमति देने पर। कुछ भाग्यशाली महिलाएँ थीं, जो बादशाह की पसंदीदा बनकर रानियाँ बनीं और उनके बच्चे मुगल शासक बने। लेकिन अधिकतर महिलाओं का जीवन हरम की दीवारों के भीतर ही समाप्त हो जाता था।


कैसे हुआ हरम का अंत?

18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। 1857 के विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया, तब बहादुर शाह ज़फर के हरम को समाप्त कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने मुगल हरम में रहने वाली महिलाओं को या तो निर्वासित कर दिया या फिर उनकी देखभाल करने से इनकार कर दिया। कई महिलाएँ भीख माँगने को मजबूर हो गईं और कुछ ने अपने जीवन का अंत कर लिया।

मुगल हरम एक रहस्यमयी संसार था, जहाँ प्रेम, शक्ति, ऐश्वर्य, राजनीति, षड्यंत्र और दर्द एक साथ मौजूद थे। यह जगह जितनी भव्य थी, उतनी ही घुटन भरी भी थी। हरम की महिलाएँ सोने के पिंजरे में कैद थीं, जहाँ उन्हें सभी सुख-सुविधाएँ मिलती थीं, लेकिन स्वतंत्रता का नामो-निशान नहीं था। कुछ भाग्यशाली महिलाएँ थीं जो सत्ता में प्रभावशाली बनीं, लेकिन अधिकांश महिलाओं का जीवन अनदेखी कहानियों में गुम हो गया।

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