भारत में पहली बार लागू हुआ इच्छा मृत्यु कानून, जानें कौन-कौन से देश हैं शामिल
भारत में इच्छा मृत्यु यानी यूथेनेसिया पर वर्षों से बहस चल रही है। कर्नाटक पहला राज्य बन गया है, जहां सम्मान के साथ मरने के अधिकार को कानूनी रूप से मान्यता मिली है। इस कानून के तहत, लाइलाज बीमारी से पीड़ित लोग, जिनकी ठीक होने की कोई संभावना नहीं है, वे अपनी इच्छा से मृत्यु चुन सकते हैं। दुनिया में कई देश पहले से ही यह अधिकार अपने नागरिकों को दे रहे हैं, जैसे नीदरलैंड, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, और कनाडा। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि किन-किन देशों में इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता प्राप्त है और भारत में यह कानून कैसे लागू हुआ।

"क्या किसी व्यक्ति को अपनी मौत चुनने का अधिकार होना चाहिए?" यह सवाल जितना संवेदनशील है, उतना ही जटिल भी। जब कोई व्यक्ति असहनीय दर्द से जूझ रहा हो, उसकी बीमारी का कोई इलाज न हो और जीवन बस एक संघर्ष बनकर रह जाए, तब क्या उसे यह फैसला करने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह सम्मान के साथ विदा हो सके?
दुनिया के कई देशों में इस पर गहराई से विचार किया गया और कानून बनाए गए, जहां लाइलाज बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों को 'इच्छा मृत्यु' (Euthanasia) का अधिकार दिया गया है। भारत में भी इस विषय पर बहस लंबे समय से चल रही थी, और अब कर्नाटक पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने इसे कानूनी रूप से मान्यता दी है।
भारत में इच्छा मृत्यु
भारत में Passive Euthanasia यानी "निष्क्रिय इच्छामृत्यु" की अनुमति पहले ही दी जा चुकी थी, जिसमें किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने की अनुमति होती है। लेकिन 2023 में कर्नाटक ने ‘Right to Die with Dignity’ यानी सम्मान के साथ मरने के अधिकार को लागू कर दिया। कर्नाटक सरकार के इस फैसले के अनुसार, ऐसे मरीज जो लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे हैं और जिनकी बचने की कोई संभावना नहीं है, वे चिकित्सकीय निगरानी में इच्छा मृत्यु का विकल्प चुन सकते हैं।
भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इस विषय पर एक ऐतिहासिक फैसला दिया था, जिसमें Living Will (पूर्व इच्छा पत्र) की अनुमति दी गई थी। इसका मतलब यह था कि कोई व्यक्ति पहले से लिखकर रख सकता है कि अगर वह भविष्य में किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाए और उसके ठीक होने की कोई उम्मीद न रहे, तो उसे कृत्रिम जीवनरक्षक प्रणाली से मुक्त कर दिया जाए। भारत में इस कानून की शुरुआत भले ही अभी हुई हो, लेकिन दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां इच्छा मृत्यु को पहले से ही कानूनी मान्यता मिल चुकी है। आइए जानते हैं उन देशों के बारे में, जिन्होंने अपने नागरिकों को सम्मान के साथ मौत चुनने का अधिकार दिया है।
यहां इच्छा मृत्यु को मिली है मान्यता
1. नीदरलैंड
नीदरलैंड वह पहला देश था जिसने 2001 में इच्छामृत्यु को कानूनी रूप से मान्यता दी। इस कानून के तहत, अगर कोई व्यक्ति असहनीय शारीरिक या मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है और उसकी कोई चिकित्सकीय सहायता नहीं हो सकती, तो वह अपनी इच्छा से मरने का फैसला ले सकता है। यहां डॉक्टरों की निगरानी में मरीज को एक विशेष दवा दी जाती है, जो उसे बिना दर्द के मृत्यु प्रदान करती है। इस कानून के अनुसार, डॉक्टरों को भी यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी निगरानी में किसी रोगी को इच्छा मृत्यु दिलाने में मदद कर सकते हैं।
2. बेल्जियम
बेल्जियम ने 2002 में इच्छामृत्यु को वैध कर दिया, और यह उन कुछ देशों में शामिल है जहां न केवल वयस्क बल्कि गंभीर रूप से बीमार बच्चे भी इच्छा मृत्यु का अनुरोध कर सकते हैं। इस कानून के तहत, यदि कोई मरीज असहनीय शारीरिक या मानसिक कष्ट से जूझ रहा है और उसकी स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं है, तो वह डॉक्टर से इच्छा मृत्यु की मांग कर सकता है।
3. स्विट्जरलैंड
स्विट्जरलैंड में साल 1942 से इच्छा मृत्यु कानूनी रूप से वैध है। हालांकि, यहां का कानून नीदरलैंड और बेल्जियम से थोड़ा अलग है। स्विट्जरलैंड में डॉक्टर सीधे तौर पर मरीज को मारने की अनुमति नहीं देते, बल्कि ऐसे उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं जिससे मरीज खुद अपनी मौत चुन सकता है। यहां ‘सुसाइड पॉड’ नाम की एक मशीन भी विकसित की गई है, जिसमें मरीज बैठकर एक बटन दबाता है और धीरे-धीरे ऑक्सीजन की कमी से उसकी मौत हो जाती है।
4. कनाडा
कनाडा में 2016 में मेडिकल असिस्टेड डाइंग (MAiD) यानी चिकित्सकीय सहायता से मृत्यु प्राप्त करने को कानूनी मान्यता मिली। इसके तहत, जो व्यक्ति गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो और जिसकी मृत्यु निकट हो, वह डॉक्टर की मदद से इच्छा मृत्यु चुन सकता है। 2021 में, इस कानून को और विस्तारित किया गया और अब इसमें उन लोगों को भी शामिल किया गया जो लाइलाज मानसिक बीमारियों से ग्रसित हैं।
5. ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में 2017 में विक्टोरिया राज्य ने पहली बार इच्छामृत्यु को वैध किया। इसके बाद, अन्य राज्यों ने भी इसे स्वीकार किया और अब कई राज्यों में यह कानूनी रूप से लागू है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में इच्छा मृत्यु के लिए बहुत सख्त नियम हैं। मरीज़ को यह साबित करना पड़ता है कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ है और खुद यह फैसला ले सकता है। उसे कोई लाइलाज बीमारी है जिससे छह महीनों में उसकी मृत्यु हो सकती है। उसे बार-बार अपने फैसले की पुष्टि करनी पड़ती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह किसी दबाव में तो नहीं है।
6. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड ने 2019 में ‘End of Life Choice Act’ लागू किया, जिसमें गंभीर रूप से बीमार लोगों को इच्छा मृत्यु का अधिकार दिया गया। यहां पर मरीज को यह साबित करना होता है कि उसकी बीमारी लाइलाज है और छह महीनों में उसकी मृत्यु हो सकती है। वह मानसिक रूप से स्वस्थ है और अपनी मर्जी से यह फैसला ले रहा है। दो स्वतंत्र डॉक्टरों ने उसकी मेडिकल स्थिति की पुष्टि की है।
7. कोलंबिया
कोलंबिया पहला लैटिन अमेरिकी देश है जिसने 1997 में ही इच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता दी थी। हालांकि, शुरुआत में इसे लागू करने में कई अड़चनें आईं, लेकिन 2015 में इस कानून को पूरी तरह से अमल में लाया गया। यहां पर डॉक्टरों को यह अनुमति है कि वे गंभीर रूप से बीमार मरीजों को इच्छा मृत्यु देने में मदद कर सकते हैं।
भारत के अन्य राज्यों में भी यह कानून होगा लागू ?
कर्नाटक का यह निर्णय भारत में एक नए बदलाव की शुरुआत हो सकता है। हालांकि, यह अभी सिर्फ उन मरीजों के लिए लागू है जो लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर हैं और जिनके बचने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या भविष्य में भारत भी उन देशों की तरह बनेगा जहां किसी भी लाइलाज रोगी को बिना कष्ट के मरने का अधिकार मिलेगा?
समाज में इस पर अलग-अलग विचार हैं। कुछ लोग इसे मानवाधिकार मानते हैं, जबकि कुछ इसे नैतिक रूप से गलत समझते हैं। लेकिन एक बात तय है—यह विषय जितना संवेदनशील है, उतना ही जरूरी भी।
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